प्रोफिट के लिए नहीं पैशन के लिए बनाई फिल्म

महर करो पपळाज माता की टीम फिल्म के प्रमोशन के लिए जयपुर आई
राजस्थानी फिल्म 'महर करो पपळाज माताÓ की टीम इन दिनों फिल्म के प्रमोशन के लिए जयपुर में है। डेरा डाला है सिंधी कैंप बस स्टैंड के सामने स्थित होटल जयमंगल पैलेश में। मैं जब होटल पहुंचा (काफी इंतजार कराने के बाद-11 बजे का वक्त देकर दोपहर करीब 2 बजे) तो निर्माता मनीष खाना खाने के लिए होटल से निकल ही रहे थे। अभिवादन के बाद हम उनके कमरे में पहुंचे। अभिनेता रमेश गुणावता लेटे हुए टीवी देख रहे थे। हमें देखते ही बड़े जोश से गले लगे। मनीष ने वहीं चाय मंगवा ली। चाय की चुस्कियों के बीच हमने फिल्म का विचार बनने से लेकर पर्दे तक पहुंचने के सफर पर बात की।
महर करो पपळाज माता बनाने का आइडिया कैसे आया?
मैं रमेश के साथ मुंबई से घूमने आया था। इस दौरान जब मैं पपळाज माता के मंदिर पहुंचा तो लोगों की आस्था देख कर चकित रह गया। कोई भरी दुपहरी तपती रेत में दंडवत करता माता के आ रहा था तो किसी ने माता के मंदिर में इस लिए डेरा डाल रखा था कि उसका दुख दूर हो जाए। मंदिर ढोकने आने वालों में ज्यादातर ऐसे थे जिनकी किसी न किसी रूप में माता ने मुराद पूरी की थी। मैं तो फलैट हो गया। मंदिर में ही मैने रमेश को कह दिया कि मैं माता पर फिल्म बना रहा हूं और तुम उसमें काम कर रहे हो।
मतलब आप पर भी माता का जादू चल गया
बिल्कुल चल गया। यूं कहिए मैं माता के रंग में रंग गया।
 इससे पहले भी आपने कोई फिल्म बनाई है?
नहीं जी। प्रयास पहला ही है। हां इससे पहले मैं बालाजी टेलीफिल्म्स सहित कई बड़े प्रोडक्शन हाउस में क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में काम कर चुका हूं।
तो सबकी तरह आपको भी लगा होगा कि कुछ खुद का प्रोडक्शन करूं।
जी बिल्कुल। मैं भी सबमें से एक ही हूं। हां इतना जरूर है कि उन सब में से जो सपने सिर्फ देखते नहीं पूरे करने का जज्बा रखते हैं।
आप तो मुंबई से हैं। यहां देहात में शूटिंग का कैसा अनुभव रहा।
जी बस पूछिए मत। यहां शूटिंग करने के बाद ही मुझे यह अहसास हुआ कि शूटिंग क्या होती है। वहां तो स्टूडियो में हर चीज मौजूद होती है पर यहां तो चीज-चीज जुटानी पड़ती है। एक गाने में मुझे हीरोइन के लिए स्पेशल ड्रेस की जरूरत थी, आप मानेंगे नहीं मुझे तीन दिन जद्दोजहद करनी पड़ी तब जाकर इंतजाम हुआ। यहां आकर सबसे बड़ा फायदा मुझे यह हुआ कि मुझे हर लोकेशन रीयल मिली। सरसों के खेत। पहाड़ गांव और ग्रामीण। सब कुछ रीयल।
खेत के प्रति किसान बहुत सजग होता है, खासकर राजस्थान में। वह खड़ी फसल में से तो सिंगल आदमी को भी नहीं गुजरने देता। ऐसी किसी स्थिति से आपको दो चार होना पड़ा।
जी हां, लेकिन रमेश मेरे साथ था। इसके स्थानीय होने का मुझे पूरा लाभ मिला। खेत के मालिक ने हमें पूरा सहयोग किया। यहां तक कि उसने खेत की तारबंदी भी कटवा दी।
कब तक रिलीज करने का इरादा है।
मार्च के लास्ट वीक में। मैं इसे किसी भी रूप में हिंदी फिल्म से कमतर नहीं रखना चाहता। इसीलिए मैं अपनी टीम के साथ अभी से इसके प्रमोशन में जुट गया हूं। मेरी कोशिश यही है कि मैं कलाकारों के साथ पूरे राजस्थान में घूमं और लोगों को अपनी फिल्म के बारे में बताऊं।
देखने में आया कि राजस्थानी फिल्मों में लाभ का प्रतिशत कुछ ज्यादा नहीं रहता?
देखिए! मैंने फिल्म केवल प्रोफिट के लिए नहीं बनाई है। यह मेरा पैशन है। नो प्रोफिट चलेगा, लेकिन हां यह जरूर चाहूंगा कि जो पैसा हमने लगाया है वह निकल आए।
(काफी देर हो चुकी थी। मुझे कहीं निकलना था, इसलिए मनीष और रमेश को फिल्म की कामयाबी की बधाई देते हुए मैंने उनसे इजाजत ली। हां ! अभिनेता रमेश गुणावता से बातचीत अगली पोस्ट में)

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