नाटक 24 घंटे में झलका माता-पिता का दर्द






शिवराज गूजर के निर्देशन में खेला गया संतोष कुमार निर्मल का नाटक
आप बड़े मन से किसी के यहां जायें और वहां उपेक्षा मिले तो कैसा महसूस करेंगे आप। खासकर तब जब उसेक्षा करने वाला कोई और नहीं आपका अपना बेटा हो। आपकी अपनी बहू हो। माता-पिता का यह दर्द महाराणा प्रताप सभागार में मंचित किए गए नाटक 24 घंटे में झलका। संतोष कुमार निर्मल के लिखे इस नाटक का निर्देशन शिवराज गूजर ने किया।

शिवाजी फिल्म्स की इस प्रस्तुति में सिनेमा व थियेटर के मंझे कलाकारों के जीवंत अभिनय ने दर्शकों की आंखें नम कर दी। नाटक का कथानक यह है कि नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद माता-पिता कुछ वक्त अपने बेटे के साथ बिताना चाहते हैं। इसी चाह में वे मुंबई में वाइफ व बच्चे के साथ रह रहे अपने से मिलने पहुंच जाते हैं। वहां जाने पर उन्हें अहसास होता है कि जितने अरमान लेकर वे अपने बेटे बहू से मिलने के लिए आए हैं उससे कई गुना परेशानी उनके आने से बेटा व बहू को है। वे उन्हें मुसीबत समझ रहे हैं और धर्मशाला में टिकाने की बात कर रहे हैं। इससे उनका दिल टूट जाता है और वे राज खोलते हैं कि वे वहां रहने नहीं आए हैं। वे तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। टेन अगले दिन होने के कारण वे 24 घंटे अपने बेटे-बहू के पास आए थे। बेटे को अपनी गलती का अहसास होता है और वह उन्हें रोकने की काशिश करता है, लेकिन वे नहीं रुकते।
इस मर्मस्पर्शी कहानी में पिता का रोल सिकंदर चौहान ने किया तथा उनके अपोजिट सुनिता बर्मन थीं। बेटे की भूमिका अनिल सैनी ने निभाई तथा उनकी वाइफ ज्योति शर्मा बनीं। राजेश अग्रवाल ने सिकंदर चौहान के दोस्त के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पोते का किरदार अनुराग गुर्जर ने निभाया। खास बात यह रही कि नाटक के हर दृश्य में तालियां बजीं।

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