हुकुम से मिलेगी राजस्थानी सिनेमा को नई दिशा : लखविंदर सिंह
भंवरी फिल्म से चर्चा में आए निर्देशक लखविंदर सिंह ने राजस्थानी सिनेमा में बहुत ही कम समय में अपनी पहचान बना ली है। जल्द ही उनकी राजस्थानी फिल्म हुकुम रिलीज होने वाली है। इन दिनों वे इसी के प्रमोशन में लगे हैं। उन्होंने www.rajasthanicinema.com के साथ चर्चा की अपने कैरियर, अपनी फिल्म और राजस्थानी सिनेमा के हालात पर। उनका मानना है कि राजस्थानी सिनेमा को एक बड़ी हिट की जरूरत है ताकि वह फिर से गति पकड़ सके।
जब भी किसी की फिल्म रिलीज होती है उसे एक घबराहट सी होती है। आपकी भी फिल्म हुकुम रिलीज होने वाली है, क्या आपको भी ऐसा कुछ महसूस हो रहा है।
- घबराहट जैसी कोई बात मेरे मन में नही है। मैने और मेरी टीम ने पूरे मन से काम किया है। सभी कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है, फिर हम क्यों घबराएं। हमें पूरा विश्वास है कि हमारी यह फिल्म अच्छी चलेगी और राजस्थानी सिनेमा में एक नया ट्रेंड स्थापित करेगी।
आपकी पिछली सारी फिल्में चर्चित विषयों पर रही रही हैं। क्या यह भी किसी चर्चित सब्जेक्ट पर है।
-मेरे साथ यह बात जुड़ी हुई जरूर है और में ऐसी फिल्में बनाता भी आया हूं पर यह किसी ऐसे विषय पर नहीं है। इसकी कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। यह एक्शन, रोमांस और भावनाओं का फुल पैकेज है। इसके एक-एक फ्रेम में राजस्थान रचा बसा है।
नाम से तो यह फिल्म राजा महाराजाओं से जुड़ी कहानी लगती है।
-नहीं। राजा महाराजाओं से जुड़ा इसमें कुछ भी नहीं है। हुकुम शब्द सामने वाले के सम्मान का प्रतीक है और बोलने वाले की गुलामी का भी। यह राजस्थान के एक ऐसे गांव की कहानी है जहां जर ,जोरु और जमीन के लिए एक-दूसरे का खून बहाना मामली बात है। यहां तक कि बेटी भी अपने बाप और मां व भाई की हत्या करने से नहीं चूकती। ऐसे माहौल में अपने परिवार की सुरक्षा के लिए लड़ने वाले एक योद्धा की कहानी है हुकुम।
हिंदी फिल्मों में आजकल आइटम सांग एक जरूरत सी बन गई है। राजस्थानी फिल्मों में भी यह परिपाटी चल निकली है। क्या आपकी फिल्म में भी कोई आइटम सांग है।
-आपकी बात सही है पर हमने इसमें आइटम सांग नहीं रखा है। हमने राजस्थानी संगीत की खुशबू को कहीं कम नहीं होने दिया है। इसके सभी गीत कानों में रस घोलने वाले हैं।
लोग राजस्थानी फिल्मों को घाटे का सौदा मानते हैं। इसके बावजूद भी आप एक के बाद एक राजस्थानी फिल्म बनाते जा रहे हैं।
-अगर आप एक अच्छी फिल्म अच्छी नीयत के साथ बनाएंगे तो फिल्म जरूर चलेगी। मुझे खुशी है कि राजस्थान की जनता ने मेरी हर फिल्म को पसंद किया है। यही कारण है कि निर्माता मुझ पर विश्वास करते हैं और मेरी फिल्म में पैसा लगाते हैं। यही मेरी प्रेरणा है यही मेरा विश्वास है।
राजस्थानी फिल्मों को वो मुकाम नही मिल पा रहा है जिसकी वो हकदार हैं। इसके पीछे आप क्या कारण मानते हैं।
-निर्माता-निर्देशकों को सरकार की तरफ से सही सहयोग और प्रदर्शन के लिए सिनेमाघर नहीं मिल पाना मेरी नजर में सबसे बड़ा कारण है इस इंडस्ट्री के पिछड़ने का।
तो आपके हिसाब से कैसे सुधर सकती है राजस्थानी फिल्म उद्योग की दशा।
-फिल्मकार अच्छे विषय पर गुणवत्ता वाली फिल्म बनाएं। अच्छे प्रमोशन से फिल्म के प्रति वो उत्सुकता जताएं कि जनता उसे देखने सिनेमा घर तक खिंची चली आए। इसके लिए जरूरी है कि सरकार अनुदान की राशि पांच से बढ़ा कर कम से कम 15 लाख रुपए करे। राजस्थानी फिल्म को शूटिंग के लिए लोकेशन किराये में 75 प्रतिशत छूट प्रदान करे। सिनेमाघरों के मालिकों को फिल्म लगाने के लिए बाध्य करे। अगर इतना भी होजाए तो यह इंडस्ट्री खड़ी ही नहीं होगी बल्कि दौड़ने लगेगी।
आजकल रीमेक का जबरदस्त क्रेज है। क्या आप भी ऐसे किसी प्रोजक्ट पर काम कर रहे हैं।
-नहीं। अभी मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। वैसे भी राजस्थान में सब्जेक्ट्स इतने भरे पड़े हैं कि उन्हें बनाते-बनाते ही फिल्मकार की उम्र बीत जाए।
आप आजकल टीवी धारावाहिक भी बना रहे हैं। छोटे परदे पर आने का कोई विशेष कारण।
-मेरी नजर में परदा छोटा हो या बड़ा दोनों का अपनी-अपनी जगह पर महत्व है। मेरा मकसद है कि मैं राजस्थान के ज्यादा से ज्यादा कलाकारों को काम दे सकूं। यह काम छोटे परदे के जरिए आसानी से हो सकता है। जब आपके पास दानों माध्यम हों तो आप ज्यादा कलाकारों को मौका दे सकते हैं।
हुकुम के अलावा आपके और कोनसे प्रोजक्ट हैं जो तैयार हैं या जिन पर काम चल रहा हैं।
-तांडव फिल्म की शुटिंग पूरी हो चुकी है। उसका पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है। एक कॉमेडी फिल्म भाग बाबा भाग की की शुटिंग की तैयारी चल रही है। धारावाहिक महासती मैना सुंदरी की शुरुआती शूटिंग पूरी कर ली है। धारावाहिक भरत का भारत का प्री प्रोडक्शन का काम चल रहा है।
- घबराहट जैसी कोई बात मेरे मन में नही है। मैने और मेरी टीम ने पूरे मन से काम किया है। सभी कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है, फिर हम क्यों घबराएं। हमें पूरा विश्वास है कि हमारी यह फिल्म अच्छी चलेगी और राजस्थानी सिनेमा में एक नया ट्रेंड स्थापित करेगी।
आपकी पिछली सारी फिल्में चर्चित विषयों पर रही रही हैं। क्या यह भी किसी चर्चित सब्जेक्ट पर है।
-मेरे साथ यह बात जुड़ी हुई जरूर है और में ऐसी फिल्में बनाता भी आया हूं पर यह किसी ऐसे विषय पर नहीं है। इसकी कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। यह एक्शन, रोमांस और भावनाओं का फुल पैकेज है। इसके एक-एक फ्रेम में राजस्थान रचा बसा है।
नाम से तो यह फिल्म राजा महाराजाओं से जुड़ी कहानी लगती है।
-नहीं। राजा महाराजाओं से जुड़ा इसमें कुछ भी नहीं है। हुकुम शब्द सामने वाले के सम्मान का प्रतीक है और बोलने वाले की गुलामी का भी। यह राजस्थान के एक ऐसे गांव की कहानी है जहां जर ,जोरु और जमीन के लिए एक-दूसरे का खून बहाना मामली बात है। यहां तक कि बेटी भी अपने बाप और मां व भाई की हत्या करने से नहीं चूकती। ऐसे माहौल में अपने परिवार की सुरक्षा के लिए लड़ने वाले एक योद्धा की कहानी है हुकुम।
हिंदी फिल्मों में आजकल आइटम सांग एक जरूरत सी बन गई है। राजस्थानी फिल्मों में भी यह परिपाटी चल निकली है। क्या आपकी फिल्म में भी कोई आइटम सांग है।
-आपकी बात सही है पर हमने इसमें आइटम सांग नहीं रखा है। हमने राजस्थानी संगीत की खुशबू को कहीं कम नहीं होने दिया है। इसके सभी गीत कानों में रस घोलने वाले हैं।
लोग राजस्थानी फिल्मों को घाटे का सौदा मानते हैं। इसके बावजूद भी आप एक के बाद एक राजस्थानी फिल्म बनाते जा रहे हैं।
-अगर आप एक अच्छी फिल्म अच्छी नीयत के साथ बनाएंगे तो फिल्म जरूर चलेगी। मुझे खुशी है कि राजस्थान की जनता ने मेरी हर फिल्म को पसंद किया है। यही कारण है कि निर्माता मुझ पर विश्वास करते हैं और मेरी फिल्म में पैसा लगाते हैं। यही मेरी प्रेरणा है यही मेरा विश्वास है।
राजस्थानी फिल्मों को वो मुकाम नही मिल पा रहा है जिसकी वो हकदार हैं। इसके पीछे आप क्या कारण मानते हैं।
-निर्माता-निर्देशकों को सरकार की तरफ से सही सहयोग और प्रदर्शन के लिए सिनेमाघर नहीं मिल पाना मेरी नजर में सबसे बड़ा कारण है इस इंडस्ट्री के पिछड़ने का।
तो आपके हिसाब से कैसे सुधर सकती है राजस्थानी फिल्म उद्योग की दशा।
-फिल्मकार अच्छे विषय पर गुणवत्ता वाली फिल्म बनाएं। अच्छे प्रमोशन से फिल्म के प्रति वो उत्सुकता जताएं कि जनता उसे देखने सिनेमा घर तक खिंची चली आए। इसके लिए जरूरी है कि सरकार अनुदान की राशि पांच से बढ़ा कर कम से कम 15 लाख रुपए करे। राजस्थानी फिल्म को शूटिंग के लिए लोकेशन किराये में 75 प्रतिशत छूट प्रदान करे। सिनेमाघरों के मालिकों को फिल्म लगाने के लिए बाध्य करे। अगर इतना भी होजाए तो यह इंडस्ट्री खड़ी ही नहीं होगी बल्कि दौड़ने लगेगी।
आजकल रीमेक का जबरदस्त क्रेज है। क्या आप भी ऐसे किसी प्रोजक्ट पर काम कर रहे हैं।
-नहीं। अभी मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। वैसे भी राजस्थान में सब्जेक्ट्स इतने भरे पड़े हैं कि उन्हें बनाते-बनाते ही फिल्मकार की उम्र बीत जाए।
आप आजकल टीवी धारावाहिक भी बना रहे हैं। छोटे परदे पर आने का कोई विशेष कारण।
-मेरी नजर में परदा छोटा हो या बड़ा दोनों का अपनी-अपनी जगह पर महत्व है। मेरा मकसद है कि मैं राजस्थान के ज्यादा से ज्यादा कलाकारों को काम दे सकूं। यह काम छोटे परदे के जरिए आसानी से हो सकता है। जब आपके पास दानों माध्यम हों तो आप ज्यादा कलाकारों को मौका दे सकते हैं।
हुकुम के अलावा आपके और कोनसे प्रोजक्ट हैं जो तैयार हैं या जिन पर काम चल रहा हैं।
-तांडव फिल्म की शुटिंग पूरी हो चुकी है। उसका पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है। एक कॉमेडी फिल्म भाग बाबा भाग की की शुटिंग की तैयारी चल रही है। धारावाहिक महासती मैना सुंदरी की शुरुआती शूटिंग पूरी कर ली है। धारावाहिक भरत का भारत का प्री प्रोडक्शन का काम चल रहा है।
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