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सिकंदर चौहान ने भोजपुरी में मारी एंट्री

करवाचौथ फिल्म से कर रहे हैं डेब्यू, खलनायकी के दिखाएंगे तेवर


राजस्थान के कलाकार प्रदेश के बाहर भी अभिनय जगत में इस माटी का नाम रोशन कर रहे हैं। ऐसी ही प्रतिभाओं में एक और नाम शामिल हो गया है सिकंदर चौहान का। राजस्थानी फिल्मों में अपनी खलनायकी और कॉमेडी से छाप छोड़ने वाले चौहान ने अब भोजपुरी में एंट्री मारी है।
वे वहां करवाचौथ फिल्म से डेब्यू कर रहे हैं। इसमें वे अपने मनपसंद जोनर खलनायकी के तेवर दिखाएंगे।

राजस्थानी फिल्म माटी का लाल मीणा गुर्जर से लाइमलाइट में आए सिकंदर चौहान को असली पहचान भंवरी ने दी। इसमें उनके द्वारा निभाए गए हरिया के किरदार ने उन्हें दर्शकों का चहेता बना दिया। इसके बाद इस साल आई उनकी दो फिल्मों हुकुम और तांडव में उनकी अदाकारी और भी निखर कर सामने आई। तांडव में खलनायक के रूप में उन्होंने जो तेवर दिखाए वाकई खतरनाक थे। जल्द ही वे रूपकंवर, थाने काजळियो बणा ल्यूं और मजो आ गयो में एक अलग ही अंदाज में नजर आएगे।

सिंकंदर चौहान राजस्थानी के साथ ही बॉलीवुड में भी धीरे-धीरे घुस रहे हैं। वे कंस और कोटा जंक्शन जैसी हिंदी फिल्मों में भी मजबूत किरदार कर रहे हैं। चौहान की खासियत यह है कि वे अपने किरदार में परफेक्शन के लिए जी जान लगा देते हैं। पारस चैनल पर प्रसारित धारावाहिक मैना सुंदरी में अपनी भूमिका में जान फूंकने के लिए उन्होंने सिर मुंडवा लिया। हालांकि, ऐसा करना उन्हें सामाजिक जीवन में काफी भारी पड़ा, लेकिन वे विचलित नहीं हुए। मोहल्ले वालों के साथ-साथ उन्हें पत्नी व बच्चों से भी ताने सुनने पड़े पर वे डटे रहे और उसका नतीजा यह हुआ कि धारावाहिक में सबसे ज्यादा उनका किरदार ही सराहा गया।

सिकंदर कहते हैं-मैने कई साल थिएटर पर संघर्ष करने के बाद यह मुकाम पाया है। इसलिए मैं इसकी अहमियत समझता हूं। मेरे लिए यह शौक नहीं, मेरा यह प्रोफेशन है। मेरी रोजी है। इसे मैं हल्के में नहीं ले सकता। यह मेरे लिए एक-दो दिन का काम नहीं बल्कि जीवन भर की जुगत है। मैं चाहता हूं कि लोग जब सिकंदर का नाम लें तो एक अच्छे अभिनेता के रूप में लें। मेरे शहर का नाट्यकर्मी कभी मेरा जिक्र करे तो कहे-कौन कहता है कि थिएटर वाले फिल्मों में सफल नहीं होते। मिसाल के लिए और कहीं जाने की क्या जरूरत है अपने सिकंदर को देख लो। मैं कोई बहुत बड़ा आर्टिस्ट नहीं हूं, लेकिन हां ! बनना जरूर चाहता हूं। मेरी ख्वाहिश को खुदा ने मूर्त रूप तो दे दिया है, बस अब इसे संवारना है और वो मेरा काम है। इस काम को मैं पूरी लगन से करने में जुटा हूं।

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