रिकॉर्ड तोड़ रहा यह साल, रिलीज हुई 12 फिल्में, पिछले साल 10 मूवीज पहुंची थीं सिनेमा हॉल
- शिवराज गूजर
राजस्थानी सिनेमा के भी अब अच्छे
दिन आ रहे हैं। एक के बाद एक रिलीज हो रही फिल्मों से तो यही लग रहा है। इस
साल अब तक 12 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं और दिसंबर महीना पूरा बाकी है।
इस वर्ष फिल्म रिलीज होने का सिलसिला शुरू हुआ एक धार्मिक फिल्म जय हींगलाज माता से। यह फिल्म फरवरी में रिलीज हुई। इसके बाद मार्च में स्पीड और बढ़ी। इस महीने दो फिल्में आर्इं। हुकुम और म्हारे हिवड़ा में नाचे मोर। मई इससे भी ज्यादा खुशी देने वाला रहा। इसमें एक के बाद एक तीन फिल्में रिलीज हुर्इं। मायाजाळ, टांको भिड़ग्योऔर तांडव। पहली दोनों फिल्में शुक्रवार को ही सिनेमाघरों में उतरीं, लेकिन कुछ कारणों के चलते तांडव रविवार को लगी। सितंबर थोड़ा ठंडा रहा। इसमें दो ही फिल्में आर्इं। जीवती रे बेटी और मरुधर म्हारो घर। नवंबर में ग्राफ वापस चढ़ा, वो भी थोड़ा बहुत नहीं बल्कि बहुत ज्यादा। इस महीने चार फिल्में दर्शकों तक पहुंचीं। यह महीना इसलिए भी खास रहा कि दो-दो फिल्में एक साथ रिलीज हुर्इं। धरम बहन के साथ स्कूल बाउंड्री रिलीज हुई तो राजू राठौड़ के साथ म्हारी सुपातर बींदणी। इससे प्रतिस्पर्द्धा का माहौल भी बना।
इस वर्ष फिल्म रिलीज होने का सिलसिला शुरू हुआ एक धार्मिक फिल्म जय हींगलाज माता से। यह फिल्म फरवरी में रिलीज हुई। इसके बाद मार्च में स्पीड और बढ़ी। इस महीने दो फिल्में आर्इं। हुकुम और म्हारे हिवड़ा में नाचे मोर। मई इससे भी ज्यादा खुशी देने वाला रहा। इसमें एक के बाद एक तीन फिल्में रिलीज हुर्इं। मायाजाळ, टांको भिड़ग्योऔर तांडव। पहली दोनों फिल्में शुक्रवार को ही सिनेमाघरों में उतरीं, लेकिन कुछ कारणों के चलते तांडव रविवार को लगी। सितंबर थोड़ा ठंडा रहा। इसमें दो ही फिल्में आर्इं। जीवती रे बेटी और मरुधर म्हारो घर। नवंबर में ग्राफ वापस चढ़ा, वो भी थोड़ा बहुत नहीं बल्कि बहुत ज्यादा। इस महीने चार फिल्में दर्शकों तक पहुंचीं। यह महीना इसलिए भी खास रहा कि दो-दो फिल्में एक साथ रिलीज हुर्इं। धरम बहन के साथ स्कूल बाउंड्री रिलीज हुई तो राजू राठौड़ के साथ म्हारी सुपातर बींदणी। इससे प्रतिस्पर्द्धा का माहौल भी बना।
रिकॉर्ड टूटा
इस साल 12 फिल्में
रिलीज हुई हैं, जो कि एक रिकॉर्ड है। यह राजस्थानी सिनेमा के इतिहास में
किसी भी साल में रिलीज होने फिल्मों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। पिछला साल इस
मामले में दूसरे स्थान पर है। इसमें भी तब तक के आंकड़ों के हिसाब से
रिकॉर्डतोड़ दस फिल्में सिनेमा घरों में पहुंची थी। हिट-फ्लॉप की गणित से
दूर अगर इस आंकड़े पर गौर करें तो यह काफी उत्साहजनक है। फिल्मकारों के लिए
भी और कलाकारों, दर्शकों के लिए भी।
ये साल भी रहे उत्साह से भरे
राजस्थानी
फिल्म उद्योग के लिए आज जैसा खुशी का माहौल पहले भी कुछ सालों में रहा है।
तीन से चार फिल्मों के रिलीज होने का सिलसिला तो शुरू से ही रहा है, लेकिन
1988 में यह टूटा। इस साल छह फिल्में रिलीज हुर्इं। सबसे ज्यादा चर्चित
रहने वाली फिल्म बाई चाली सासरिए भी इसी साल दर्शकों के बीच पहुंची थी। यही
नहीं नानी बाई को मायरो और करमां बाई जैसी धूम मचाने वाली फिल्में भी
दर्शकों को इसी साल देखने को मिली थी। इसके अलावा ढोला-मारू जैसी प्रेम में
पगी कहानी भी दर्शकों को सिनेमा घरों तक खंीचने में कामयाब रही थी। वर्ष
1989 इससे एक कदम आगे रहा। इस साल सात फिल्में आर्इं। सभी फिल्में बहुत
अच्छी थीं पर रमकूड़ी-झमकूड़ी ने महिलाओं को खासा लुभाया। 1990 और 91 में यह
संख्या कम हुई फिर भी दोनों साल पांच-पांच फिल्में देखने को मिलीं। इनमें
1991 में आई भोमली फिल्म भी थी, जिसमें निभाए गए किरदार के कारण आज भी नीलू
को भोमली के नाम से जानते हैं लोग। एक आंकड़ा आगे 1993 में बढ़ा। इस साल छह
मूवी प्रदर्शित हुई। इनमें डिग्गी पुरी का राजा खासी चर्चा में रही। इसके
बाद राजस्थानी सिनेमा धीमी गति से चलता रहा। किसी साल एक और किसी साल दो से
तीन या ज्यादा से ज्यादा चार फिल्में आती रहीं। करीब 19 साल बाद 2013 में
राजस्थानी सिनेमा ने स्पीड पकड़ी। नतीजतन 10 फिल्में सिनेमा घरों तक पहुंची।
यह गति 2014 में और बढ़ी। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2015 राजस्थानी फिल्म
इंडस्ट्री के लिए और खुशी देने वाला साबित हो।
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