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क्यों नहीं बन रहीं राजस्थानी फिल्में

संतोष निर्मल
राजस्थानी फिल्मों का नाम आते ही कुछ लोग ऐसा मुंह बनाते हैं, जैसे कोई बदजायका चीज मुंह में आ गई हो। ये लाग राजस्थानी फिल्मों को बड़ी उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। उनका कहना होता है कि राजस्थानी फिल्में भी कोई देखने की चीज है। राजस्थानी फिल्मों की इस दयनीय स्थिति के लिए आखिर आज कौन जिम्मेदार है। क्यों राजस्थानी फिल्मों को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा।  शायद ही कभी किसी ने इस पर गंभीरता से मनन करने की जरूरत महसूस की होगी। लोग यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं कि राज्य सरकार कुछ मदद ही नहीं करती, तो राजस्थानी फिल्में कैसे बनें। यानी ले- देकर ठीकरा सरकार के सिर पर फोड़ दिया जाता है।
बालीवुड में राजस्थानी फाइनेंसरों व निर्माताओं की धाक
क्या कभी किसी ने सोचा है कि बालीवुड में राजस्थानी फाइनेंसरों व निर्माताओं की धाक होने के बावजूद राजस्थानी फिल्मों की ऐसी बुरी  हालत क्यों है। क्यों राजस्थानी फिल्मों को अपने ही लोगों के हाथों अपमान सहना पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि मुम्बई में बसे इन समर्थ राजस्थानी फिल्मकारों ने राजस्थानी फिल्मों को भुला दिया है। शायद वह इन फिल्मों को अपने स्तर की नहीं मानते । राजस्थानी फिल्मों से इन्हें भले ही नफरत हो पर राजस्थान के प्रति वह अपना प्रेम प्रदर्शित करते रहते हैं। यह बात आपको सुनने में अजीब लग सकती है, पर यह सच है। ताराचंद बडज़ात्या, सूरज बडज़ात्या से लेकर केसी बोकाडिय़ा और पप्पू वर्मा तक राजस्थान में शूटिंग करते रहते हैं। इससे ज्यादा वह राजस्थान से सम्बंध नहीं रखना चाहते। केसी बोकाडिय़ा तो यह कहते हैं कि उनकी हिंदी फिल्म के एक सेट के खर्चे से दो राजस्थानी फिल्में बन सकती हैं। पर इसके बावजूद बोकाडिय़ा जी ने आज तक एक भी राजस्थानी फिल्म बनाने की जरूरत नहीं समझी।

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