मायड़ भाषा स्यूं छूटे कोने नेह

फिल्म वितरक श्याम सुंदर झालाणी 1962 से कर रहे हैं राजस्थानी फिल्मों का वितरण, अब तक 18 फिल्में की रिलीज, लारला दिनां मैं राजस्थानी फिल्मां पर लिख रया छे एक किताब


शिवराज गूजर
राजस्थानी फिल्मां का बारा मैं जाणबा के लिए यां स्यूं जुड़ेड़ा लोगां स्यूं मिलबो शुरू करया। म्हाने अब अस्या आदमी की जरूरत छी ज्यो राजस्थानी फिल्मां का बारा मैं रबी-रबी (सब) जाणतो होवे। जींने पूछ्या सब एक ही नाम बतायो-फिलम डिस्ट्रीब्यूटर श्याम सुंदर झालाणी।
घणी कोशिश के बाद वांका फोन नंबर मिल्या वे भी ऑफिस का। उठे फोन कर्या तो पतो चाल्यो के वे तो घरां गयोड़ा छे। घरां का नंबर लिया। पतो चाल्यो वे तो इवनिंग वाक पर निकळेड़ा छे। वांका पोता विशाल झालाणी स्यूं मोबाइल नंबर ले अर वां स्यूं बात करी। मकसद बतायो तो घणां राजी हुया। कया, पूछबा की बात ही कोने-ऑफिस आ जाओ। दूसरे दिन दोपहर डेढ़ स्यूं दो बज्यां के बीच को वक्त तय होयो। झालाणी जी स्यूं बात होबा के बाद मन मैं घणी तसल्ली हुई। लाग्यो जाणे आधो मैदान तो मार लियो। निर्मल जी अर बोड़ा जी ने फोन कर झालाणी जी स्यूं हुई बात अर मिलबा को वक्त बतायो। वे भी दोन्यूं या बात जाण अर घणां राजी हुया।
    दोपेरां का करीब डेढ़ बज्यां जद म्हे, मैं, निर्मलजी और बोड़ा जी, एमआईरोड पर वांके ऑफिस पहुंच्या तो कौल के मुताबिक बैठ्या मिल्या। जातां ईं घणी आव-भगत करी। बातां चाली तो बोल्या, थांका स्यूं पैली भी दो-तीन जणां राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल को प्रस्ताव ले अर आया छा। दुबारा लौट अर आया ई कोने। वां का मन की झिझक म्हे समझ गया छा। तीनों ई एक साथ बोल्या-झालाणी जी म्हांको मकसद बस अतरो सो छे कि आपणां सिनेमा ने वो मुकाम मिले जीं को यो हकदार छे। आपणां कलाकारां ने भी वो मान मिले ज्यो और प्रदेशां का ने मिले छे। आपणीं भाषा को रुतबो बढ़ेलो तो आपणों भी बढ़े लो। म्हांकी बातां सुणबा के बाद मैं वे काफी बेचिंता होग्या। ऊं के बाद मैं ज्यो वे म्हांका स्यूं खुल्या तो खुलता ई चलग्या।
पैली फिल्म नानी बाई को मायरो करी रिलीज
नानी बाई को मायरो पेली फिल्म छी ज्यो मैं रिलीज करी छी। या 1962 की बात छे। पं. इंद्र ईं ने बणाई छी। राजस्थानी मैं बणी या तीसरी फिलम छी। वो दिन छे अर आज को दिन छे, म्हे राजस्थानी फिल्मां को वितरण करतो आ रयो छूं। अब तक मैं करीब 18 राजस्थानी फिल्मां को वितरण कर चुक्यो छूं। मायड़ भाषा मैं बणी फिल्मां स्यूं अब तो अतरो मोह होग्यो कि हर रिलीज फिल्म चाहे कोई भी बणावे अपणी ही लागे छे।
आपणां ही लोग कोने बणावे मायड़ भाषा में फिल्म
आपणां प्रदेश का घणां लोग बॉलीवुड मैं पीसा लगा रया छे। अणाप-सणाप। पण राजस्थानी फिल्मां मैं लगाबा का नाम स्यूं ईं बिदक छे। अस्या-अस्या लोग छे ज्यो पसंद कोने आवे तो लाखां को सेट तुड़वा दे छे। वां स्यूं म्हारो खेबो छे कि थाने नुकसाण को डर छे तो यूं मान ल्यो के एक सेट टूटयो ही सही। कम स्यूं कम एक फिल्म तो खुद की मायड़ भाषा मैं बणाओ। आबाळी पीढ्यां याद करे ली थांने। पण शायद म्हारी बात सुणबा ळो राजस्थानी सपूत हाल जाग्यो कोने।
1993 मैं हुयो पैलो राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल
पैलो राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल 1993 मैं जोधपुर मैं हुयो। दर्पण सिनेमा के मांइने हुयो यो कार्यक्रम आखिरी छो। ईं के बाद राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल कोने हुयो। हां, एक दो बार अवार्ड कार्यक्रम जरूर हुया।
बातां घणी करबा की मन मैं छी। पण बकत थोड़ो कम छो। एक दिन फेर वांस्यूं मिलबा की जरूरत छी। एक दो दिन मैं फेर आबा को कौल कर अर उतरग्या दुग्गड़ बिल्डि़ग की सीढ्यां।

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