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दूसरी विदाई का भव्य प्रीमियर

अपने शहर के छोरे ( निर्देशक लोकेश मैनारिया) का हौंसला बढ़ाने उमड़ी झीलों की नगरी, फिल्म के कलाकारों व टीम का सम्मान



उदयपुर. निर्देशक लोकेश मैनारिया की राजस्थानी फिल्म दूसरी विदाई का 6 जुलाई को सुखाडिय़ा रंगमंच पर भव्य प्रीमियर हुआ। दर्शकों की भीड़ देखकर लग रहा था जैसे अपने शहर के छोरे का हौंसला बढ़ाने झीलों की नगरी उमड़ आई थी। इस मौके पर फिल्म के कलाकारों व इससे जुड़ी टीम का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि संभागीय आयुक्त अपर्णा अरोड़ा व विशिष्ट अतिथि निर्देशक-अभिनेता मोहन कटारिया ने दीप जलाकर की। इसके बाद मुख्य अतिथि ने फिल्म के कलाकारों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर व माला पहनाकर सम्मानित किया। राजस्थानी फिल्मां रो उच्छब आयोजन समिति के शिवराज गूजर ने राजस्थानी भाषा में फिल्म बनाने के लिए निर्देशक लोकेश मैनारिया व उनकी टीम को बधाई दी। कलाकार गजेंद्र ने अपने जादूई संचालन से दर्शकों को पूरे कार्यक्रम के दौरान बांधे रखा।


कम से कम लोकेशन तो निशुल्क मिले : कटारिया
प्रीमियर में जयपुर से विशेष रूप से पहुंचे निर्देशक-अभिनेता मोहन कटारिया ने राजस्थानी फिल्मों की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए फिल्म इंडस्ट्री के विकास के लिए सरकार से आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को अन्य प्रदेशों की तरह निर्माता को सब्सिडी देने में कोई अड़चन है तो कोई बात नहीं, लेकिन कम से कम उसे लोकशन तो निशुल्क उपलब्ध करवा दी जाए। इसके अलावा शूटिंग के दौरान डाक बंगलों में टहरने की व्यवस्था कर दे तो यही निर्माता के लिए बड़ी राहत होगी।
 
मैंने जो कहना था, फिल्म में कह दिया : मैनारिया 
निर्देशक लोकेश मैनारिया ने कहा कि मैं समाज से कुछ कहना चाहता था, उसे कहने के लिए एक माध्यम चाहिए था और वो मैंने फिल्म को चुना। मुझे जो कहना था वो इस फिल्म में कह दिया है। अब आगे फैसला दर्शक करेंगे। मैंने और मेरी टीम ने अपना बेस्ट देने की कोशिश नहीं की है बल्कि दिया है। मेरा पहला प्रयास है, हो सकता है कुछ कमियां रही हों, लेकिन हां इतना जरूर कहना चाहता हूं कि मेरी यह फिल्म हर देखने वाले को सोचने पर जरूर मजबूर करेगी।

फिल्म चलती रही, तालियां बजती रही
फिल्म के शुरू होने से लेकर अंत तक उदयपुर की जनता ने अपने शहर के इस छोरे के प्रयास को तालियों की गडग़ड़ाहट से सराहा। लोग जिस तन्मयता से फिल्म देख रहे थे उससे लग रहा था बंदे ने पहली ही फिल्म में कमाल कर दिया है। फिल्म के कई दृश्यों पर तो देर तक तालियां बजती रहीं। गानों ने तो वो समां बांधा कि सीटियों के बीच कई दर्शक नाचने लगे।

कुछ फिल्म के बारे में
बहुत दिनों के बाद ऐसी फिल्म देखी जो सीधी दिल में उतर गई। स्क्रिप्ट में कसावट, कलाकारों के अभिनय में परिपक्वता और सबसे बड़ी बात निर्देशक की फिल्म पर पकड़ का जो कॉम्बिेनेशन दूसरी विदाई में है वह कम ही देखने को मिलता है। इसके अलावा कॉमेडी को फूहड़ता से बचाकर ले जाना भी इस फिल्म को एक अलग ही श्रेणी में खड़ा करता है। मेरी नजर में यह टोटल एंटरटेनमेंट है।
शिवराज गूजर,
राजस्थानी फिल्मां रो उच्छब आयोजन समिति
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फिल्म का विषय सामाजिक होने से सीधा मन को छूता है। एक-एक फ्रेम निर्देश के साथ ही कलाकारों की मेहनत की दास्तां बयां करता है। मैंने सोचा था कि मैं थोड़ी फिल्म देखकर होटल आ जाऊंगा, लेकिन जब फिल्म शुरू हुई तो सीट से हिल ही नहीं पाया। एक फिल्म वाला दूसरे की फिल्म को कम ही पचा पाता है, पर लोकश के निर्देशन में वो पाचक तत्व हैं कि मैं फिल्म देखते समय उसी का हिस्सा हो गया था।
मोहन कटारिया, 
निर्माता, निर्देशक व अभिनेता

2 टिप्‍पणियां

Jandunia ने कहा…

शानदार पोस्ट

AAPNI BHASHA - AAPNI BAAT ने कहा…

बधाई शिवराज जी, आपनै इण शानदार ब्लॉग सारू अर लोकेशजी नै घणा-घणा रंग... म्हारी शुभकामनावां.. आ फिल्म राजस्थानी फिल्म जगत में छा जावै अर मायड़ राजस्थानी नै पूरो मान दिलवावै..
डॉ. सत्यनारायण सोनी

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