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लुड़की जी! मुझके पन्या सेपट होते हैं

 छोटे से गांव का लड़का। एक ढाबे पर गिलास धोते अगर सिल्वर स्क्रीन पर छा जाने का सपना देखे, तो आप इसे क्या कहेगे। उसका दुस्साहस ही ना। उसने यह दुस्साहस किया और सिनेमा के उस पर्दे पर जा पहुंचा जिसे वह घंटो टीवी और फिल्म हॉल में लालायित निगाहों से निहारा करता था। वह लड़का था दीपक मीणा। आज उसे सब पन्या सेपट के नाम से जानते हैं। शहर की ऊंची इमारतों में रहने वालों से लेकर कच्ची बस्ती में बसने वाला शख्स उसके इस डायलोग का दिवाना है-लुड़की जी! मुझके तो पन्या सेपट होते हैं। चाय पर बैठे तो पंन्या सेपट ने राजस्थानी सिनेमा डॉट कॉम से शेयर किया अपना अब तक का सफर।

शिवराज गूजर
  • ढाबे से एक्टिंग में कैसे एंट्री हुई?

    ढाबे पर काम करने के दौरान में कप-गिलास धोते-धोते टीवी पर फिल्म में हीरो के बोले डायलोग दोहराया करता था। एक दिन ऐसा ही करते वक्त एक्टिंग में इतना खो गया कि मेरे हाथ से कप-गिलास टूट गए। मैं घबरा गया और मार के डर से वहां से भाग कर जा बैठा बस में। वह बस सामोद जा रही थी। वहां मैंने शूटिंग होती देखी तो उतर गया। शाम तक मैंने किसी तरह स्पॉट बॉय का काम हासिल कर लिया। अब वह सब कुछ मेरे सामने था जो मैं टीवी पर देखा करता था। दो साल में वहां काम करता रहा। इस दौरान मैंने लाइटिंग से लेकर ड्रेसमैन तक का काम देखा। काम के साथ-साथ में ज्यादा से ज्यादा सेट पर बना रहकर देखता था कि एक्टर लोग किस तरह से सीन को करते हैं। कैसे डायलोग बोलते हैं। मेरे काम से प्रभावित होकर द स्वॉर्ड आॅफ टीपू सुल्तान के एपिसोड डायरेक्टर विजय पांडे ने मुझे अपना पर्सनल बॉय रख लिया। यहां से सही मायने में मेरा एक्टिंग का सफर शुरू हुआ। उन्होंने मुझे पहली बार एक सीन के दौरान खड़ा किया। मुझे लगा अब मेरी गाड़ी चल पड़ेगी पर शायद किस्मत को अभी यह मंजूर नहीं था। पारिवारिक कारणों के चलते मुझे फिर घर लौटना पड़ा।
  • …तो फिर आपकी एक्टिंग ?

    वो चलती रही। मैंने उसे नहीं छोड़ा। शूटिंग छूट गई तो मैं थिएटर पर जाने लग गया। वहां मुझे दिलीप जैक ने अपने नाटक भारत का लहू में चांस दिया। इसके बाद मैंने साबिर खान और अन्य निर्देशकों के साथ नाटक किए। सब अच्छा चल रहा था। अचानक पिताजी की मौत से सब बिखर गया। सात बहन भाइयों में सबसे बड़ा मैं ही था। घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। थिएटर से तो कुछ मिलता नहीं था। परिवार कैसे चलता? घर चलाने के लिए कुछ काम करना था। गाड़ी चलानी आती थी सो ड्राइवर बन गया। ड्राइवरी के दौरान में अपने एक्टिंग के हुनर से सवारियों का मनोरंजन किया करता था। इस तरह लोगों का मन बहल जाता था और मेरी रिहर्सल हो जाती थी।
  • यह ड्राइवर एक्टर कैसे बना?

    मन में एक्टिंग का कीड़ा तो था ही जो हमेशा कुलबुलाता रहता था। कहीं भी ऐसी कोई बात सुनता या चीज देखता थो फट से आकर्षित हो जाता था। एक दिन ऐसे ही गाड़ी में बैठा अखबार पढ़ रहा था तो एक विज्ञापन पर नजर पड़ी। यह वीडियो एल्बम के लिए था। नये लड़के-लड़कियों को चांस देने की बात कही गई थी। अंधा क्या चाहे दो आंखें। मैंने घुमा दी गाड़ी बताए एड्रेस पर। वह एड मिरेकल एडवर्टाइज कंपनी का था। वे लोग यूकी कैसेट के लिए एक एलबम बना रहे थे। मैंने आॅडिशन दिया और उस एलबम में एक गाने के लिए मेरा चयन हो गया। उसके बोल थे म्हारी तीतरी। यह गाना इतना चला कि इसने रातों-रात मेरी पहचान बना दी। लोग मुझे जानने लगे। सड़क पर कोई भी मुझे देखकर यह कहता था कि अरे ये तीतरी वाला लड़का तो मैं इतना खुश होता था कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
  • इस गाने से हीरो ही बने या कुछ कमाई भी हुई?

    बस हीरो ही बना। इसके लिए मुझे कोई पैसा नहीं मिला। मैं फिर भी बहुत खुश था। पैसा नहीं मिला तो क्या हुआ जो मैं चाहता था वो तो मुझे मिला। मैं इसी में संतुष्ट था।
  • इसके बाद तो आपकी गाड़ी चल पड़ी होगी?

    अरे अभी कहां सरजी। इसके बाद वापस वही ड्राइवरी शुरू। पापी पेट जो था साथ में। हां अब इतना जरूर था कि मैं आम ड्राइवर नहीं था। मेरी गाड़ी जहां भी खड़ी होती ऐसे लोगों की भीड़ लग जाती जिन्होंने मेरा गाना देखा था। मेरी यही पॉपुलर्टी एक दिन मुझे भारी पड़ गई। गाड़ी मालिक ने मुझे साफ बोल दिया कि गाड़ी चलानी है तो चला हीरोगीरी के लिए मेरे यहां कोई जगह नहीं है। बात दिल को लग गई सर। मैंने नौकरी छोड़ दी। काम क्या छोड़ा सबने मुझे छोड़ दिया। घरवालों ने भी हाथ खड़े कर दिए। वो मेरा सबसे बुरा वक्त था सरजी। दो-दो दिन तक भूखा सोया मैं उन दिनों।
  • यह दुख के बादल कैसे छंटे?

    यह तो ऊपरवाला ही जाने। मैं तो अपने ही दुख में डूबा था कि एक दिन बीएसबी स्टूडियो से निर्माता-निर्देशक श्रवण जैन का फोन आया। उन्होंने मेरा गाना देखा था और मेरा काम उन्हे पसंद आया। वहां पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने एलबम में कबूतरी गाने में चांस दिया। मेरी किस्मत कहिए या कुछ कि यह गाना भी जबरदस्त चल पड़ा। बस में यहीं से जैन साब की यूनिट से जुड़ गया। मैंने उनके साथ कई एलबम किए। उनमें मैंने एक्टिंग भी की और निर्देशन भी किया।
  • दीपक मीणा पंन्या सेपट कैसे बना?

    यह बड़ी ही रोचक कहानी है। जैन साब कॉमेडी वीडियो फिल्म पर काम कर रहे थे। नाम सोथा था छोरा काळ्या की सुहाग रात। टाइटल कुछ जम नहीं रहा था। इसमें सुहाग रात शब्द खटक रहा था। सोचते-सोचते पंन्या नाम जहन में आया। नाम जैन साहब के दिमाग में आया और सेपट मेरे जहन में। सीडी का नया टाइटल रखा-पन्या सेपट की शादी। यह एलबम इतना चला कि यह नाम मेरी पहचान बन गया। कब मैं दीपक से पन्या सेपट हो गया पता ही नहीं चला।
  • पंन्या सेपट का जो गेटअप है यह किसके दिमाग की उपज है?

    यह खोड़ (बदमाशी) मेरी ही है जी। इसमें कुंआरा बाप के महमूद और दादा कोडके के लुक को मिक्स किया। इस तरह मक्खी मूंछ, बूंटी की बूशर्ट व चड्डा और लंबा नाड़ा पन्या सेपट की पहचान बन गए। लोगों को मेरा यह रूप इतना पसंद आया कि जो भी मेरी सीडी मार्केट में आई हाथों-हाथ बिक गई। इसका असर यह हुआ कि मार्केट में कई पन्या सेपट पैदा हो गए। लुक भी वैसा ही बना लिया। पन्या सेपट के नाम से कार्यक्रम में भीड़ भी जमा हो जाती  है पर जब मेरी जगह किसी और को देखते हैं तो उन्हें निराशा होती है। ऐसे में लोगों के साथ धोखा नहीं हो इसलिए अब मैं अपने कार्यक्रम के पोस्टर में अपना फोटो और दीपक मीणा उर्फ पन्या सेपट लिखवाने लग गया, ताकि मुझे देखने आने वाले को घर पर ही पता चल जाए कि असली पन्या आ रहा है या नकली। उन्हें कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर निराश नहीं होना पड़े।
  • इतनी पॉपुलरटी के बाद भी आप बड़े पर्दे पर बहुत कम नजर आए?

    मेरी पॉपुलरटी ही मेरी दुश्मन बन गई। आॅडिशन में मेरा सलेक्शन होने के बाद जब मैं शूटिंग पर पहुंचता तो हीरो से ज्यादा लोग मेरे पास जमा हो जाते। यह बात उनका ईगो हर्ट कर जाती और मेरा रोल कटकर छोटा हो जाता। ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। उसी का परिणाम है कि बहुत जल्द मेरी एज ए हीरो फिल्म मजो आग्यो रिलीज होने वाली है।
  • कौन-कौन से प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं?

    जल्द ही निर्माता-निर्देशक केसी बोकाड़िया की हिंदी फिल्म डर्टी पॉलीटिक्स रिलीज होने वाली है। नंदकिशोर मित्तल व लखविंदर सिंह की फिल्म मजो आग्यो भी कंप्लीट हो गई है। एक और राजस्थानी फिल्म दस्तूर रिलीज के लिए तैयार है। श्रवण जैन-ऊषा जैन की छमियां में रोल कर रहा हूं। विपिन तिवारी की अनाम फिल्म में भी मैं हूं।
  • अब आपने बड़े परदे की और कदम बढ़ा दिए हैं तो क्या सीडी फिल्में करना छोड़ देंगे?

    कभी नहीं। इनसे ही तो मेरी पहचान है। आज मैं जो कुछ भी हूं, इन्हीं सीडी फिल्मों से बनी आॅडिएंस के कारण हूं। मेरे यही फेन मेरी ताकत हैं। जल्द ही मेरी एक सीडी फिल्म आने वाली है-पन्या सेपट : म्हारी बिल्ली, म्हारी म्याऊं।
  • कोई ड्रीम रोल, जो करने की आपकी दिली इच्छा हो?

    हां जी। है ना। कुंआरा बाप में जो रोल महमूद ने किया है वैसा ही रोल मेरी करने की इच्छा है। मुझे ऊपर वाले पर विष्वास है कि वो मुझे ऐसा मौका जरूर देगा।

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